तेरे हाथों में पैवस्त
मेख़ों से बहता लहू
कोर आँखों पे छिड़का
तो पलकों की चिलमन से
ता-हद्द-ए-इम्काँ
बसारत के हर ज़ाविए पर
अजब नूर की धारियाँ
तह-ब-तह तीरगी की रवा चीरती
अन-गिनत मिशअलें
आगही के दरीचों में
इरफ़ान के आईनों में
दमकने लगीं
नज़्म
बसारत
परवीन फ़ना सय्यद