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बंद हो जाए मिरी आँख अगर | शाही शायरी
band ho jae meri aankh agar

नज़्म

बंद हो जाए मिरी आँख अगर

सूफ़ी तबस्सुम

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बंद हो जाए मिरी आँख अगर
इस दरीचे को खुला रहने दो

ये दरीचा है उफ़ुक़ आईना
इस में रक़्साँ हैं जहाँ के मंज़र

इस दरीचे को खुला रहने दो
इस दरीचे से उभरती देखी

चाँद की शाम
सितारों की सहर

इस दरीचे को खुला रहने दो
इस दरीचे से किए हैं मैं ने

कई बे-चश्म नज़ारे
कई बे-राह सफ़र

इस दरीचे को खुला रहने दो
ये दरीचा है मिरी शौक़ का चाक-ए-दामाँ

मिरी बदनाम निगाहें, मिरी रुस्वा आँखें
ये दरीचा है मिरी तिश्ना-नज़र

बंद हो जाए मिरी आँख अगर
इस दरीचे को खुला रहने दो