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बंद दरीचों में ज़िंदगी | शाही शायरी
band darichon mein zindagi

नज़्म

बंद दरीचों में ज़िंदगी

मुनीर अहमद फ़िरदौस

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बंद दरीचे, जो कभी बंद नहीं होते
जहाँ किरनों के झाँकने पर पहरे हैं

अँधेरी कोठरियों में ज़बाँ ख़ामोश, जिस्म बोलते हैं
जब कोई ख़्वाहिश-ज़ादा अपनी बरहना ख़्वाहिश लिए

किसी बंद दरीचे का रुख़ करता है
तो पाकीज़गी और पैराहन

कोने में बैठ कर बैन करते हैं
ज़ख़्म-आलूद जिस्म के अंदर चीख़ें कोहराम बरपा कर देती हैं

इतनी नहीफ़ चीख़ें
कि किसी कान पर वो दस्तक नहीं दे पातीं

रोज़ अन-गिनत जिस्म तड़पते हैं
और उन में ढेरों ख़्वाहिशें दफ़्न की जाती हैं