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बम्बई की एक पुरानी शाम | शाही शायरी
bambai ki ek purani sham

नज़्म

बम्बई की एक पुरानी शाम

अब्दुल अहद साज़

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शाम ढले
चर्च-गेट के उस तरफ़

बीखा बहराम का कुआँ
क्रॉस-मैदान के फ़ुट-पाथ पर बने

बरसों पुराने बेंचों पर बैठे हुए
बरसों पुराने पारसी

सफ़ेद लाम्बा कोट
सियाह क़दीम कुलाह

ख़ामोश और गम्भीर
खोई खोई नज़रें जमाए

जैसे पुराने बम्बई की रूह
आ निकली हो

आज की शाम का कोई मंज़र देखने