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बैलन्स-शीट | शाही शायरी
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नज़्म

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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किसे ख़बर थी
एक मुसाफ़िर मुस्तक़बिल ज़ंजीर करेगा और सफ़र के सब आदाब बदल जाएँगे

किसे यक़ीं था
वक़्त की रौ जिस दिन मुट्ठी में बंद हो गई सारी आँखें सारे ख़्वाब बदल जाएँगे

हमें ख़बर थी
हमें यक़ीं था

तभी तो हम ने तोड़ दिया था रिश्ता-ए-शोहरत-ए-आम
तभी तो हम ने छोड़ दिया था शहर-ए-नुमूद-ओ-नाम

लेकिन अब मिरे अंदर का कमज़ोर आदमी शाम सवेरे मुझे डराने आ जाता है
नए सफ़र में क्या खोया है क्या पाया है सब समझाने आ जाता है