बहस तो अपनी है ही नहीं ताक़त वालों से
सारे दावे उन के अलग हैं अपनी दलीलें अलग सी हैं
वो कहते हैं उन का क़हर क़यामत बन कर कड़केगा
हम कहते हैं मौत का खेल हमें जी जान से प्यारा है
और इस खेल के होते हुए
बस्ती में उजयारा है
नज़्म
बहस तो अपनी ही नहीं
यहया अमजद