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बहरूपिया | शाही शायरी
bahrupiya

नज़्म

बहरूपिया

शारिक़ कैफ़ी

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अनोखा और नया ग़म शर्त है कोई
तुम्हारे ख़ुद-कुशी करने की

तो फिर भूल जाओ
यहाँ तो बस वही ग़म हैं

पुराने ग़म
कि जिन से काम ये दुनिया चलाती आ रही है

मगर तुम हो कि हँस देते हो उन पर
अगर ये ग़म तुम्हें ग़म ही नहीं लगते

कि महबूबा तुम्हारी बेवफ़ा है
कि वो बच्चा

छटी जिस की मनाना थी तुम्हें आज
नाक में है ऑक्सीजन ट्यूब उस के

तो फिर ये गोलियाँ सल्फ़ास की बे-कार में तुम जेब में रक्खे हुए हो
इन्हें जा कर उसी कठिया में रख आओ

कि जिस में कल ही तुम ने साल भर के वास्ते गेहूँ भरा है