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बहार | शाही शायरी
bahaar

नज़्म

बहार

अब्दुल मजीद भट्टी

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पत्ती पत्ती झूम रही थी
मस्त हवा थी

महक रहा था फूलों की ख़ुश्बू से सारा बाग़
बाग़-बहार को देख के भौंरा

मस्त हुआ ललचाया
उस पर कर दे जान निछावर

उस के मन में आया
शौक़ से बे-ख़ुद हो कर वो इक फूल की जानिब लपका

इतने में माली ने बढ़ कर तोड़ लिया वो फूल
जी भँवरे का टूट गया

और हो गई ख़त्म बहार