बड़ी मुश्किलों से
दर्द-ए-ज़ेह में मुब्तला चुप ने
एक आवाज़ को जनम दिया
मैं ने उसे गोद ले लिया
पाल-पोस कर बड़ा किया
और उस की ज़बान पर
एक लफ़्ज़ रखा
मगर वो गूँगी निकली
मैं ने मायूसी में
उसे क़त्ल कर दिया
और पकड़ा गया
लाश ठिकाने लगाते वक़्त
मुझ पर मुक़द्दमा चला
क़त्ल के इल्ज़ाम में
मगर मुझे फाँसी की सज़ा हुई
एक लफ़्ज़
किसी ज़बान पर रखने के जुर्म में
नज़्म
बड़ी मुश्किलों से
जावेद शाहीन