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बदन का फ़ैसला | शाही शायरी
badan ka faisla

नज़्म

बदन का फ़ैसला

मोहम्मद अल्वी

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ये बदन
जिसे मैं

बेहतरीन ग़िज़ाएँ खिलाता रहा
पानी की जगह

शराब पिलाता रहा
यही बदन

मुझ से कहता है
जाओ

दफ़ा हो जाओ
जन्नत के मज़े उड़ाओ

कि दोज़ख़ के अज़ाब उठाओ
मेरी बला से

मैं तो अब
क़ब्र में सो रहूँगा

मिट्टी हूँ
मिट्टी का हो रहूँगा!!