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बड़ा चक्कर लगाएँ | शाही शायरी
baDa chakkar lagaen

नज़्म

बड़ा चक्कर लगाएँ

रफ़ीक़ संदेलवी

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किसी दिन आ
पुरानी खाईयों को पार कर के

दलदलों में पाँव रक्खें
नर्सलों को काट डालें

पेश-ए-मंज़र के लिए रस्ता बनाएँ
आ किसी दिन

धुँद में जकड़ी हुई
काँटों भरी ये बाड़

जिस में वक़्त की बिजली रवाँ है
जो ज़मीं ओ आसमाँ को

काटती है
बीच से

उस को हटाएँ
आ किसी दिन

झूलते पुल से उतर कर
नक़्शा-ए-तक़वीम में

पुर-पेच कोहसारों के अंदर
झाग उड़ाती

शोर करती
बल पे बल खाती नदी में

ग़ोता-ज़न हों
तैरते जाएँ!

किसी दिन आ
बड़ा चक्कर लगाएँ!!