वो गलियों में बारिश वो गुलनार चेहरे
तमन्नाओं के वो भँवर गहरे गहरे
भरी धूप में वो पतंगें पकड़ना
''वो बातों ही बातों में लड़ना झगड़ना''
कोई काश मुझ पर ये एहसान कर दे
की बचपन के कुछ पल मेरे नाम कर दे
मैं अब उस पुराने मोहल्ले में जा कर
ख़ुदा से ये फ़रियाद करने लगा हूँ
मैं बचपन तुझे याद करने लगा हूँ
वो आँगन में लहराते सावन के झूले
रहे याद हर दम कभी हम न भूले
वो गुड्डे वो गुड़िया वो प्यारे खिलौने
वो नन्ही सी आँखों के सपने सलोने
न आगे की चिंता न पीछे के ग़म थे
न थी फ़िक्र कोई न रंज-ओ-अलम थे
पलट कर सुहाने पलों के सफ़ों को
मैं दिल को फिर आबाद करने लगा हूँ
मैं बचपन तुझे याद करने लगा हूँ
कभी नंगे पैरों से गलियों में जाना
वो बारिश के पानी में कश्ती चलाना
वो ख़्वाबों ख़यालों में परियों की बातें
वो होली के दिन वो दिवाली की रातें
वो जब साथ दुनिया के बंधन नहिं थे
वो पल ख़ूब-सूरत थे वो दिन हसीं थे
वो लम्हे वो यादें सजा कर के यारो
ये नाशाद दिल शाद करने लगा हूँ
मैं बचपन तुझे याद करने लगा हूँ
नज़्म
बचपन
नितिन नायाब