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बाज़याफ़्त | शाही शायरी
bazyaft

नज़्म

बाज़याफ़्त

इंजिला हमेश

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हम जिन ख़्वाबों के पीछे भागते हैं
वो आँख खुलते ही टूट जाते हैं

हम जिन रास्तों पर चलना चाहते हैं
वो रस्ते न जाने क्यूँ अजनबी बन जाते हैं

हमारी आँखें इंतिज़ार करना भूल चुकी हैं
हमारे आँसू ख़ुश्क हो चुके हैं

किसी की याद अब हमें सताती नहीं
अब न कोई दर्द है

न कोई ख़लिश
हम ने काट फेंके वो आ'ज़ा जो हमें लहू लहू कर चुके

हाँ
अपने आप से कुछ बिछड़ने का कुछ मलाल तो है

अपने आप पर हँसने का थोड़ा ग़म भी है
जो झूट हम ने अपनी ज़ात से बोले

उन की चुभन भी है
मगर उस के सिवा हम क्या करते

ज़िंदगी को कोई तो देना था
बिना किसी सरशारी के

क्यूँकि हम जानते हैं
हमारी मोहब्बत सड़ चुकी है