EN اردو
बाएँ आँख में तिल वाले की ज़बानी | शाही शायरी
baen aankh mein til wale ki zabani

नज़्म

बाएँ आँख में तिल वाले की ज़बानी

मोहम्मद अल्वी

;

अपने ख़ुदा को हाज़िर जान के
मैं जो कहूँगा सच ही कहूँगा

सच के अलावा कुछ न कहूँगा
मुझ को कुछ मालूम नहीं है

बस इतना मालूम है साहब
कमरे में इक लाश पड़ी थी

लाश के पास इक शख़्स खड़ा था
उस की बाएँ आँख में तिल था

दूध से उजला उस का दिल था
सब कहते हैं वो क़ातिल था!