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ब-याद-ए-अख़्तर 'शीरानी' | शाही शायरी
ba-yaad-e-aKHtar shirani

नज़्म

ब-याद-ए-अख़्तर 'शीरानी'

नय्यर वास्ती

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फ़ज़ा-ए-इश्क़ को मातम-गुसार छोड़ गया
जहाँ में नक़्श-ए-वफ़ा यादगार छोड़ गया

पयाम-ए-दीदा-ए-अफ़साना-कार छोड़ गया
हिकायत-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-यार छोड़ गया

नज़र में इक ख़लिश-ए-इंतिज़ार छोड़ गया
जिगर में इक तपिश-ए-दर्द-कार छोड़ गया

सुना के राह-ए-मोहब्बत में नग़्मा-हा-ए-जुनूँ
क़बा-ए-लाला-ओ-गुल तार-तार छोड़ गया

उफ़ुक़ के पार गया ख़ंदा-ज़न बहारों पर
चमन को ग़म-ज़दा-ओ-सोगवार छोड़ गया

बिसात-ए-ख़ाक को दे कर बहार-ए-लाला-ओ-गुल
चमन के सीने पे ज़ख़्म-ए-बहार छोड़ गया

शब-ए-बहार में तारों की रौशनी के लिए
मता-ए-गिर्या-ए-खूँनाबा-बार छोड़ गया

पटक के जाम ज़माने की बे-सबाती पर
निशान-ए-हस्ती-ए-ना-पाएदार छोड़ गया

शराब-ओ-शेर की रंगीं फ़ज़ा पे लहरा कर
सरूद-ए-ख़ुम-कदा-ए-नौ-बहार छोड़ गया