फ़ज़ा-ए-इश्क़ को मातम-गुसार छोड़ गया
जहाँ में नक़्श-ए-वफ़ा यादगार छोड़ गया
पयाम-ए-दीदा-ए-अफ़साना-कार छोड़ गया
हिकायत-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-यार छोड़ गया
नज़र में इक ख़लिश-ए-इंतिज़ार छोड़ गया
जिगर में इक तपिश-ए-दर्द-कार छोड़ गया
सुना के राह-ए-मोहब्बत में नग़्मा-हा-ए-जुनूँ
क़बा-ए-लाला-ओ-गुल तार-तार छोड़ गया
उफ़ुक़ के पार गया ख़ंदा-ज़न बहारों पर
चमन को ग़म-ज़दा-ओ-सोगवार छोड़ गया
बिसात-ए-ख़ाक को दे कर बहार-ए-लाला-ओ-गुल
चमन के सीने पे ज़ख़्म-ए-बहार छोड़ गया
शब-ए-बहार में तारों की रौशनी के लिए
मता-ए-गिर्या-ए-खूँनाबा-बार छोड़ गया
पटक के जाम ज़माने की बे-सबाती पर
निशान-ए-हस्ती-ए-ना-पाएदार छोड़ गया
शराब-ओ-शेर की रंगीं फ़ज़ा पे लहरा कर
सरूद-ए-ख़ुम-कदा-ए-नौ-बहार छोड़ गया
नज़्म
ब-याद-ए-अख़्तर 'शीरानी'
नय्यर वास्ती