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आँसू की चिलमन के पीछे | शाही शायरी
aansu ki chilman ke pichhe

नज़्म

आँसू की चिलमन के पीछे

वज़ीर आग़ा

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हँसी रुकी
तो फिर से माओं

पंजों के बल चलती चलती
बाज़ू के रेशम पे फिसलती

गर्दन की घाटी से हो कर
कान की दीवारों पर चढ़ती

इन्द्र के दालान में कूदी
और बदन

इक साग़र सा बीमार बदन
सारे का सारा

हँसी की चढ़ती नदी की
आफ़ात भरी लज़्ज़त के अंदर

झटके खाता चीख़ उठा
बस अब्बू

रोको उस माओं को अब्बू
आगे मत आए

ये माओं
और अब्बू ने

रोक दिया अपनी उँगली को
और बिल्ली

इक जस्त लगा कर
अब्बू के सीने में उतरी

और फिर
उस के तन की लम्बी शिरयानों में

पंजों के बल चलती चलती
उस की आँख में आ पहुँची है

घाट लगा कर
आँसू की चिलमन के पीछे

बैठ गई है