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औरतें नहीं जानतीं | शाही शायरी
aurten nahin jaantin

नज़्म

औरतें नहीं जानतीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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दिल की दीवारों से
उदासी को खुरच कर

एक नज़्म में इकट्ठा करना
औरतों का पसंदीदा खेल नहीं

औरतों को वो खेल पसंद नहीं
जिन के आख़िर में तालियाँ न बजाई जा सकें

औरतों को पसंद नहीं
लोग जो अपना दिल

टुकड़े कर के फेंक रहे होते हैं
जो ज़िंदगी की किताब में

हाशियों पर दर्ज होते हैं
और फ़ुट-नोट से ऊपर झाँकने की

कोशिश करते रहते हैं
जो किसी काग़ज़ के टुकड़े पर

तहरीर कर के फेंक देते हैं
मैं तुम्हारे बग़ैर नहीं रह सकता

नहीं जानती हैं औरतें
कोई सादा सी सतर

काग़ज़ पर कितनी दरश्ती से लिखी जा सकती है
आराम से पढ़ जाती हैं वो

नहीं जानती हैं औरतें
खुरदुरे लफ़्ज़ों से काटी हुई ज़िंदगी

तेज़ आँच पर रखे हुए दिल
आँखों में

बहुत गहरा देखती हुई आँखें
और एक खेल

दिल की दीवारों से
उदासी को खुरच कर

एक नज़्म में इकट्ठा करने का