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औरत | शाही शायरी
aurat

नज़्म

औरत

मजीद अमजद

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तू प्रेम मंदिर की पाक देवी तू हुस्न की मम्लिकत की रानी
हयात-ए-इंसाँ की क़िस्मतों पर तिरी निगाहों की हुक्मरानी

जहान-ए-उल्फ़त तिरी क़लम-रौ हरीम-ए-दिल तेरी राजधानी
बहार-ए-फ़ितरत तिरे लब-ए-लाल-गूँ की दोशीज़ा मुस्कुराहट

निज़ाम-ए-कौनैन तेरी आँखों के सुर्ख़ डोरों की थरथराहट
फ़रोग़-ए-सद-काएनात तेरी जबीन सीमीं की ज़ौ-फ़िशानी

भड़कते सीनों में बस रही हैं क़रार बन कर तिरी अदाएँ
तरसती रूहों को जाम-ए-इशरत पिला रही हैं तिरी वफ़ाएँ

रग-ए-जहाँ में थिरक रही है शराब बन कर तिरी जवानी
दिमाग़-ए-परवर-दिगार में जो अज़ल के दिन से मचल रहा था

ज़बान-ए-तख़्लीक़-ए-दहर से भी न जिस का इज़हार हो सका था
नुमूद तेरी उसी मुक़द्दस हसीं तख़य्युल की तर्जुमानी

है वादी-ए-नील पर तिरा अब्र-ए-ज़ुल्फ़ साया-कुनाँ अभी तक
हैं जाम-ए-ईराँ की मय में तेरे लबों की शीरीनियाँ अभी तक

फ़साना-गो है तिरी अभी तक हदीस-ए-यूनाँ की ख़ूँ-चकानी
है तेरी उल्फ़त के राग पर मौज-ए-रूद-ए-गंगा को वज्द अब तक

तिरी मोहब्बत की आग में जल रहा है सहरा-ए-नज्द अब तक
जमाल-ए-ज़ोहरा तिरे मलाएक फ़रेब जल्वों की इक निशानी

तिरी निगाहों के सहर से गुल-फ़िशाँ है शेर ओ अदब की दुनिया
तिरे तबस्सुम के कैफ़ से है ये ग़म की दुनिया तरब की दुनिया

तिरे लबों की मिठास से शक्करीं है ज़हराब-ए-जिंदगानी
तिरा तबस्सुम कली कली में तिरा तरन्नुम चमन चमन में

रुमूज़-ए-हस्ती के पेच-ओ-ख़म तेरे गेसुओं की शिकन शिकन में
किताब-ए-तारीख़-ए-ज़िंदगी के वरक़ वरक़ पर तिरी कहानी

जो तू न होती तो यूँ दरख़्शंदा शम-ए-बज़्म-ए-जहाँ न होती
वजूद-ए-अर्ज़-ओ-समा न होता नुमूदद-ए-कौन-ओ-मकाँ न होती

बशर की महदूदियत की ख़ातिर तरसती आलम की बे-करानी