EN اردو
और ख़ुदा ख़ामोश था | शाही शायरी
aur KHuda KHamosh tha

नज़्म

और ख़ुदा ख़ामोश था

फ़हीम शनास काज़मी

;

एक बोसे की तलब में
जिस्म कुब्ड़े हो गए

ज़िंदगी पानी हुई
आसमाँ से कहकशाओं की बहार

आग बरसाती रही
ज़िंदगी फ़ुट-पाथ पर

एक रोटी की तलब में
हाथ फैलाती रही

क़तरा क़तरा बेबसी तेज़ाब सी
जिस्म पिघलाती रही

रद्दी चुनवाती रही
नेटी-जेटी पर खड़ी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा

हँसती रही
और ख़ुदा ख़ामोश था