मेरा ग़म मो'तबर था
तकल्लुफ़ की क़बा नोच कर जिस ने
मा'सूम रंग-ए-आतिशीं भरा था
तख़्लीक़ के बंद जज़्बों को
अख़्लाक़ के हाथों पर धरा था
ज़िंदगी जिस के लिए
दार थी
कू-ए-दिलदार भी
रूह की तफ़्सीर भी
रंग-ए-हिना की तनवीर भी
बर्दाश्त जिस ने की
आरज़ूओं की तज़हीक भी
मुक़द्दस जज़्बात की तज़लील भी
लबों पर जिस के
कितने ऐतराज़ात थे
निहाँ जिस के दिल में
कितने ऐतराज़ात थे
कुछ सुतूर
कुछ सुतूर के दरमियाँ भी था
कहीं तहरीक
कहीं ठहराव का समाँ भी था
कहीं ख़्वाब
कहीं ख़्वाबों का सूरत-गर भी था
हम और तुम जिसे न जान सके
उस के ख़्वाबों को न पहचान सके
नज़्म
'अतहर-नफ़ीस' के लिए
नूर प्रकार