रात
गहरी मुहीब ख़ामोशी
दिल भी
चुप-चाप
यूँ धड़कता है
जैसे
दरवेश अपने हुजरे में
आसमानों को खटकाता है
नज़्म
असरार
जावेद नासिर
नज़्म
जावेद नासिर
रात
गहरी मुहीब ख़ामोशी
दिल भी
चुप-चाप
यूँ धड़कता है
जैसे
दरवेश अपने हुजरे में
आसमानों को खटकाता है