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असल में ये दश्त था | शाही शायरी
asal mein ye dasht tha

नज़्म

असल में ये दश्त था

ख़ालिद कर्रार

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इस में ये दश्त था
इस दश्त में

मख़्लूक़ कब वारिद हुई
ख़ुदा मालूम

लेकिन
सब बड़े बूढ़े ये कहते हैं

उधर इक दश्त था
जाने क्यूँ उन को यहाँ

लम्बी क़तारों
शहर की गुंजान गलियों

दफ़्तरों
शाह-राहों

रास्तों और रेस्तोरानों
जलसे जुलूसों

रेलियों और
ऐवान-हा-ए-बाला-ओ-ज़ीरीं में

ख़ुश-लिबासी के भरम में
नाचती वहशत नज़र आती नहीं