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अरीज़े की डाली | शाही शायरी
arize ki Dali

नज़्म

अरीज़े की डाली

सरवत ज़ेहरा

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तिरी नर्म लहरों पे रक्खे दिए
अपने बाक़ी के हमराह गुम हो चुके हैं

दुआओं, तमन्नाओं, ख़्वाबों का मौसम
अज़िय्यत के कीचड़ में लुथड़ा पड़ा है

ख़तों के लिफ़ाफ़े
हुरूफ़ ओ मअनी के रंगों से

ख़ाली पड़े हैं
किनारों से डाली गई

दरख़्त की सुर्ख़-रू साज़िशी पत्तियाँ
रास्तों के निशान खो चुकी हैं

मगर...
अगले दिन के हसीं ख़्वाब...

अरीज़े की डाली
अभी तक कहीं काँपती है