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अक़्ल बड़ी बे-रहम थी उस ने | शाही शायरी
aql baDi be-rahm thi usne

नज़्म

अक़्ल बड़ी बे-रहम थी उस ने

ख़ुर्शीद अकरम

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दिल को उस के दुख की घड़ी में
तन्हा छोड़ दिया

जिस्म ने लेकिन साथ दिया
दुख के गहरे सागर में

दिल को छाती से लिपटाए
जिस्म की कश्ती

होल रही है डोल रही है
अक़्ल किनारे पर बैठी

मीठा मीठा बोल रही है
दुनिया के हंगामों में

उल्टी जस्त लगाने को
बाज़ू अपने तौल रही है