ग़रीब लोगो, सितम-गज़ीदा अजीब लोगो
तुम्हारी आँखें जो मुंतज़िर हैं
कि कोई ईसा-नफ़स तुम्हारे
बुरीदा ख़्वाबों की लाश उठा कर
पढ़ेगा फिर से वो इस्म-ए-आज़म
कि जिस से ये ख़्वाब जी उठेंगे
ग़रीब लोगो, सितम-गज़ीदा अजीब लोगो
ये जान लो तुम, कि वो पयम्बर
दिलों में मौजूद है तुम्हारे
तुम अपने बाज़ू कमाँ करोगे
तुम अपने सीने सिपर करोगे
तो फिर वो ईसा-नफ़स तुम्हारे
बुरीदा ख़्वाबों को ज़िंदगी की नवेद देगा
अगर यूँही सर झुके रहे तो
ग़नीम इस बार ख़्वाब क्या हैं
तुम्हारी आँखें ही नोच लेगा
तुम्हारी आँखों में जो शरारे हैं
वो शरारे नहीं रहेंगे
तुम्हारे प्यारे नहीं रहेंगे
ग़रीब लोगो, सितम-गज़ीदा अजीब लोगो
उठो कि अब वक़्त आ गया है

नज़्म
अपने लोगों के नाम
फ़य्याजुद्दीन साइब