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अपने लिए एक नौहा | शाही शायरी
apne liye ek nauha

नज़्म

अपने लिए एक नौहा

अनवर सेन रॉय

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अच्छी तरह देख चुका हूँ
मैं मक़्तूलों में नहीं

इस लिए मेरा शुमार क़ातिलों में किया जाना चाहिए
ये इबादत-गाहें जिस का घर कही जाती हैं

मेरी एक दोस्त
उसे तलाश कर रही है

उसे अब तक ये इत्तिलाअ नहीं मिली
कि वो एक लम्बे सफ़र पर जा चुका है

वो मर चुका है
ये राज़ तो एक पागल ने भी जान लिया था

रात तो क्या
उसे ढूँडने के लिए

दिन में भी
किसी की कोई मदद नहीं कर सकते

चराग़
तुम्हारे पास सर्च-लाइटें हैं

तो उन्हें लगा कर देख लो
शाह-रगों के आस-पास

तेज़-रौ ख़ुश-फ़हमियों पर सवार
कहाँ कहाँ जाओगे

एक मुर्दे के घर में
दावत पर जाने वालों की मेज़बानी

मौत नहीं करेगी तो कौन करेगा