गुम हुए यूँ कि कभी मेरे शनासा ही न थे
कुछ लिखा होता तुम्हें मुझ से शिकायत क्या है
ख़बर कब आए हो कैसे सुनाओ प्यारे
क्या ख़बर लाए हो यारों की हिकायत क्या है
उस ने ये कुछ न कहा
और कहा तो इतना
खेल दिल-चस्प है नज़्ज़ारे करो
और फिर एक ख़ला
एक गिराँ-बार ख़मोशी की अज़िय्यत ले कर
मैं ये कहता हुआ उठ आया
कि हाँ
खेल है दिलचस्प बहुत
नज़्म
एंटीना के नेज़े
शाहीन ग़ाज़ीपुरी