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अनजाने जज़ीरों पर | शाही शायरी
anjaane jaziron par

नज़्म

अनजाने जज़ीरों पर

शमीम अल्वी

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क़दम रखने से पहले
जान लो कि

बे-आबाद जगह आसेब-ज़दा भी हो सकती है
बस्ती बसाने से पहले जिन की ख़ुश-नूदी लाज़िम आती है

बसे रहने का मुआवज़ा
कलाबत्तूनी पहना दे

ज़र्क़ चढ़ावे
मुरस्सा कुंदनी पर्नियाँ हैं

अशरफ़ी बोटी वाले कम-ख़्वाब का
सरबार भी अदा करना होता है

वर्ना
उन के उस्लू-ए-बहयात से इंहिराफ़

अल-अक़ारिब अल-अक़रब
हासिल-ए-हयात रहेगा

आफ़ियत महाजनी मिज़ाज का तक़ाज़ा पूरा करने में है
वर्ना जान रखो

हवस का आसेब इकाती उखेड़ फेंकने में
तअम्मुल न करेगा