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अंजाम | शाही शायरी
anjam

नज़्म

अंजाम

सईद क़ैस

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एक सुब्ह का तारा
सर पे आसमाँ ओढ़े

रौशनी के ज़ीने से रोज़ उतर के आता है
और इस नए घर के

अध-खुले दरीचे में आ के बैठ जाता है
हाथ के इशारों से

दाएरे बनाता है
और मैं मोहब्बत की बूँद बूँद किरनों में

रोज़ डूब जाता हूँ