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अँधियारा | शाही शायरी
andhiyara

नज़्म

अँधियारा

सिद्दीक़ कलीम

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अँधियारा और ख़ामोशी मिल जाते हैं
दर्द बहुत बढ़ जाता है

दुनिया पर वहशत छा जाती है
कहने को बातें हैं बा-मअ'नी भी बे-म'अनी भी

जब बात का मतलब उड़ जाए
अल्फ़ाज़ परेशाँ हो जाएँ

क्या जाने क्या कहना किस से कहना क्या है
पत्थर पत्थर ठोकर लगती है

रिश्ता ग़ाएब हो जाता है
अपने से या और किसी से

बंधन कैसा?
गम्भीर उदासी छा जाती है

तन्हा तन्हा सब की राहें
अपनी अपनी सब की बोली

महरूमी हर सूरत सब की महरूमी है
सावन का मंज़र

हर जानिब हरा हरा है