कितने सूरज डूबे
कितने मौसम बीते
साँसें जोड़ें धागे की सूरत में
आँखें फोड़ें
इक झोली को सीते सीते
तेरी गली में आया
तेरा घर ऊँचा था
तू ने भी मेरी झोली में
इक खोटा सिक्का फेंका था
नज़्म
अंधा भिकारी
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
नज़्म
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
कितने सूरज डूबे
कितने मौसम बीते
साँसें जोड़ें धागे की सूरत में
आँखें फोड़ें
इक झोली को सीते सीते
तेरी गली में आया
तेरा घर ऊँचा था
तू ने भी मेरी झोली में
इक खोटा सिक्का फेंका था