रूह बेचैन है इक दिल की अज़िय्यत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इस की शिकायत क्या है
रंज तो ये है कि रो रो के भुलाया होगा
वो कहाँ और कहाँ काहिश-ए-ग़म, सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमाँ
उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमाँ
त'अना-ज़न एक ज़माना नज़र आया होगा
झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं
मिट गई होगी ललक, डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ, घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरौंदे को जो ढाया होगा
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़्साने सुनाए होंगे
अश्क आँखों ने पिए और न बहाए होंगे
बंद कमरे में जो ख़त मेरे जलाए होंगे
एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
मिट के इक नक़्श ने सौ शक्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मिरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा
बे-महल छेड़ पे जज़्बात उबल आए होंगे
ग़म पशेमान-ए-तबस्सुम में ढल आए होंगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आए होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो हटाई होगी
रूठे जल्वों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ अश़्वों ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा
नज़्म
अंदेशे
कैफ़ी आज़मी