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अना | शाही शायरी
ana

नज़्म

अना

अज़ीज़ क़ैसी

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इक निगार-ए-तन्हाई
अंजुमन से नालाँ भी अंजुमन-तलब भी है

एक वहम-ए-यकताई
ज़िंदगी का सामाँ भी मौत का सबब भी है

इक जुनून-ए-दाराई
ख़ुद रक़ीब है अपना ख़ुद हरीफ़-ए-यज़्दाँ है

ख़्वाब है तो ईक़ाँ है वहम है तो ईमाँ है
इक हिसार-ए-आईना

संग-ज़न की ज़द में है
एक बे-कराँ क़ुल्ज़ुम

आब-ए-जू की हद में है
इक फ़ना का ज़िंदानी

हसरत-ए-अबद में है