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अलिफ़ ज़बर अ | शाही शायरी
alif zabar a

नज़्म

अलिफ़ ज़बर अ

ज़ुबैर रिज़वी

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बच्चे ने जिस बक्स में अपने
नन्हे-मुन्ने

खेल-खिलौनों की जो दुनिया बसा रक्खी थी
मम्मी पापा के हाथों वो उजड़ गई है

मम्मी पापा ने क्या जाने
बक्स में क्या क्या भर रक्खा है

एक बड़े से गेट के आगे
बक्स उठाए

बच्चा रोता चिल्लाता है
अपने जैसा उसे बनाने की कोशिश का

पहला दिन है