उम्र-ए-रफ़्ता के रेशमी लम्हे
धुँद में खो गए धुआँ बन कर
नग़्मा ओ रंग के सभी मौसम
रह गए ज़ेहन में ख़िज़ाँ बन कर
बन गया हाल कत्बा-ए-माज़ी
कैसी दुनिया है उस का हर मंज़र
संग-बस्ता अज़ाब लगता है
आँसुओं की किताब लगता है
नज़्म
एल्बम
मोहम्मद अली असर
नज़्म
मोहम्मद अली असर
उम्र-ए-रफ़्ता के रेशमी लम्हे
धुँद में खो गए धुआँ बन कर
नग़्मा ओ रंग के सभी मौसम
रह गए ज़ेहन में ख़िज़ाँ बन कर
बन गया हाल कत्बा-ए-माज़ी
कैसी दुनिया है उस का हर मंज़र
संग-बस्ता अज़ाब लगता है
आँसुओं की किताब लगता है