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अल-अमाँ अल-अमाँ | शाही शायरी
al-aman al-aman

नज़्म

अल-अमाँ अल-अमाँ

नाज़ बट

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सुब्ह से शाम तक
सिलसिला ज़ीस्त का

किस क़दर है कठिन किस क़दर बे-अमाँ
लम्हा लम्हा सिसकती हूई ज़िंदगी

हर क़दम पर बिलक्ती हूई ज़िंदगी
ख़्वाहिशों की असीरी पे नौहा-कुनाँ

हर घड़ी जिस्म-ओ-जाँ
रूह घायल ख़राशों के दिल पर निशाँ

रोज़-ए-अव्वल से जारी-ओ-सारी यहाँ
वहशतों का समाँ

कोई पल भी अज़िय्यत से ख़ाली नहीं
कौन सी आँख है जो सवाली नहीं

कोई वारिस नहीं कोई वाली नहीं
गुलशन-ए-ख़्वाब का कोई माली नहीं

ख़त्म होता नहीं शोर-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ
है अज़ल से अबद तक यही दास्ताँ

अल-अमाँ अल-अमाँ!!