किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
न किसी शाख़ का साया है, न दीवार की टेक
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं
चंद क़दमों के निशाँ हाँ कभी मिलते हैं कहीं
साथ चलते हैं जो कुछ दूर फ़क़त चंद क़दम
और फिर टूट के गिर जाते हैं ये कहते हुए
अपनी तन्हाई लिए आप चलो, तन्हा अकेले
साथ आए जो यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
नज़्म
अकेले
गुलज़ार