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अकेला | शाही शायरी
akela

नज़्म

अकेला

क़य्यूम नज़र

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मेरे पीछे जाने वाले कल का धुँदलका
ऐसी शक्लें जिन के नक़्श हवा पर जैसे तहरीरें हों

ऐसे क़िस्से जिन के दामन पर सायों की तस्वीरें हों
मेरे सामने आने वाले कल का उजाला

ऐसी नस्लें जिन के इल्हामों की मुबहम तफ़्सीरें हों
ऐसे ज़माने जिन में चाँद को पा लेने की तदबीरें हों

जानी धरती से अनजाने नीले फ़लक का
मैं वो 'आज' हूँ जिस के लिए दोनों ही कल ताज़ीरें हों

जिस की साथी तन्हाई के आँसुओं की ज़ंजीरें हों