अजनबी तुझ से तअ'ल्लुक़ का सिला ख़ूब है ये
तेरी ख़्वाहिश है कि हर रोज़ नई नज़्म लिखूँ तेरे नाम
मेरी कोशिश भी अजब है लेकिन
रोज़ ताज़ा नए जज़्बात कहाँ से लाऊँ
कोरे अल्फ़ाज़ की सौग़ात कहाँ से लाऊँ
ख़ुश्क आँखों के कटोरों से मैं बरसात कहाँ से लाऊँ
अजनबी तू ही बता नुस्ख़ा-ए-नायाब कोई
अजनबी मुझ को दिखा ख़ित्ता-ए-शादाब कोई
बर्ग-ए-आवारा की सूरत हूँ हवा की ज़द पर
मैं कि रक़सा हूँ अभी गर्म बगूलों के साथ
अजनबी तू भी मिरे रक़्स-ए-फ़लक-रंग में शामिल हो जा
शाइरी क्या है मिरी जान का हासिल हो जा
तू मिरा जिस्म क़बा तू मिरी रूह की पुर-नूर ग़िज़ा
शहद से मीठी मरे लब की दुआ
अजनबी कौन है तू मेरे सिवा मुझ से जुदा
नज़्म
अजनबी फ़रमाइश
खुर्शीद अकबर