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अजनबी | शाही शायरी
ajnabi

नज़्म

अजनबी

आदित्य पंत 'नाक़िद'

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बैठे बैठे रेल के डब्बे में
होती हैं बातें लोगों से

रास्ता काटने के लिए
वक़्त बाँटने के लिए

मंज़िल पर पहुँच कर
धुँदली यादें बिन कर

ये लोग छूट जाते हैं
उसी डब्बे में

ज़मीन पर बिखरे हुए
मूंगफली के छिलकों की मानिंद

मगर आज ये
कैसे अजनबी शख़्स से

हुइ मुलाक़ात सफ़र में
कि जिस का तसव्वुर

क़ुली के सर पर धरे सामान की तरह
मेरे साथ घर चला आया?