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अजब मअरका | शाही शायरी
ajab marka

नज़्म

अजब मअरका

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

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ये मअरका भी अजब है
कि जिस से लड़ता हूँ

वो मैं ही ख़ुद हूँ
रजज़ मिरा

मिरे दुश्मन के हक़ में जाता है
जो चल रहे हैं वो तीर ओ तुफ़ंग अपने हैं

जो काटते हैं वो सामान जंग अपने हैं
मैं सुर्ख़-रू हूँ तो ख़ुद अपने ख़ूँ की रंग से

मैं आश्ना हूँ
ख़ुद ईज़ा-दही की लज़्ज़त से

अजीब जंग मिरे अंदरूँ में चिड़ती है
मिरी अना मिरी बे-माएगी से लड़ती है

मैं बे-ज़रर हूँ
बस अपने सिवा सभी के लिए