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एड्स | शाही शायरी
aids

नज़्म

एड्स

शारिक़ अदील

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हवस का खेल भी कितना मसर्रत-ख़ेज़ होता है
कि उस के खेलने वाले

ये अक्सर भूल जाते हैं
बदन में जब

बदन की लज़्ज़तें ग़र्क़ाब होती हैं
तो उन के साथ

इक ऐसी तबाही जिस्म में
तहलील हो जाती है

जिस का उम्र-भर कोई
इज़ाला हो नहीं सकता