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ऐ मेरी जाँ मिरी आँखों की रौशनी सुन तो | शाही शायरी
ai meri jaan meri aankhon ki raushni sun to

नज़्म

ऐ मेरी जाँ मिरी आँखों की रौशनी सुन तो

मोनी गोपाल तपिश

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ऐ मेरी जाँ मिरी आँखों की रौशनी सुन तो
जो ज़ख़्म तू ने दिए मैं ने गुल बना डाले

महक रहे हैं वही शेर बन के साँसों में
तिरे लबों ने कई गीत मुझ को बख़्शे हैं

तिरे ही जिस्म का जादू जगा है नज़्मों में
ऐ मेरी जाँ मिरी ग़ज़लों की नग़्मगी सुन तो

तू आज भी मिरे हमराह हम-नवा है मिरी
तिरे ही नाम पे दिल अब तलक धड़कता है

मैं तुझ को भूल गया ये ख़याल है तेरा
ये सोच है तिरी बे-मा'नी बे सबब सुन तो

ऐ मेरी जाँ मिरी ग़ज़लों की ताज़गी सुन तो