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अगली रुत की नमाज़ | शाही शायरी
agli rut ki namaz

नज़्म

अगली रुत की नमाज़

शहनाज़ नबी

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मैं चाहती हूँ
कि अगली रुत में मिलूँ जो तुम से

जनम जनम की थकावटों के ख़ुतूत चेहरे से मिट चुके हों
क़दम क़दम इक सफ़र की पिछली अलामतें सब गुज़र चुकी हों

मलाल-ए-सहरा-नवर्दी पाँव के आबलों में सिमट चुका हो
मुसाफ़िरत की तमाम रंजिश

मिरे मसामों से धुल चुकी हो
किसी भी पत्थर का कोई धब्बा

किसी भी चौखट का कोई क़र्ज़ा
मिरी जबीं पर रहे न लर्ज़ां

मैं चाहती हूँ कि अगली रुत में मिलें जो हम तुम
दमक रहा हो यूँ मेरा दामन

कि तुम जो चाहो
नमाज़ पढ़ लो