अगर तुम दो-क़दम ऊपर गए बादल को छू लोगे
कहीं बारिश में बरसोगे
किसी पत्थर पे रौंदे जाओगे
छत से गिरोगे
छतरियों पर सूख जाओगे
निकालेंगी तुम्हें घर वालियाँ घर से
उठा कर डाल देंगी धूप में
उन गुदड़ियों के साथ
जिन को छोड़ कर तुम दो-क़दम ऊपर गए थे एक दिन
जब हब्स था और लोग बाहर सो रहे थे

नज़्म
अगर तुम दो-क़दम उपर गए
मोहम्मद अनवर ख़ालिद