EN اردو
अगर तुम बेचना चाहो | शाही शायरी
agar tum bechna chaho

नज़्म

अगर तुम बेचना चाहो

करामत बुख़ारी

;

अगर तुम बेचना चाहो
अदाएँ भी वफ़ाएँ भी

हसीं ख़्वाबों के रंगों की रिदाएँ भी
ये दुनिया है

यहाँ आवाज़ बिकती है
यहाँ तस्वीर बिकती है

यहाँ पर हर्फ़ की हुरमत
यहाँ तहरीर बिकती है

ये बाज़ार-ए-जहाँ इक बे-कराँ गहरा समुंदर है
यहाँ पर कश्तियाँ साहिल पे आ कर डूब जाती हैं

मुसाफ़िर मर भी जाते हैं
मगर रौनक़ नहीं जाती

ये इंसानों का जंगल है
और इस जंगल का समाँ हर वक़्त रहता है

अगर तुम बेचना चाहो
अदाएँ भी वफ़ाएँ भी

हसीं ख़्वाबों के रंगों की रिदाएँ भी
मिरे दिल में भी इक बाज़ार सजता है

जहाँ पर शाम होते ही हुजूम-ए-यास होता है ग़मों की भीड़ लगती है
कई यूसुफ़ सर-ए-बाज़ार बिकते हैं अगर तुम बेचना चाहो