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अगर ख़ुदा मिल गया मुझ को | शाही शायरी
agar KHuda mil gaya mujhko

नज़्म

अगर ख़ुदा मिल गया मुझ को

अबु बक्र अब्बाद

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ये सोचता हूँ जो
ख़ुदा कभी दीदार बख़्शेगा

और अपने फ़ज़्ल से देगा इजाज़त माँगने की कुछ
तो न दस्तार-ओ-क़बा न जिब्ह-ओ-ख़िरक़ा

न दौलत न महल न सर पे ताज माँगूँगा
न ओहदा-ए-ओ-मंसब न कोई जाह-ओ-जलाल

न इल्म-ओ-आगही न मसनद न इक़्तिदार माँगूँगा
फ़रावानी ग़म से नजात न फ़ारिग़-उल-बाली

न सेहत न शिफ़ा न अच्छी मौत माँगूँगा
न तकमील-ए-आरज़ू की दुआ न नफ़्स-ए-मुतमइन्ना की

न उम्र-ए-ख़िज़्र न शोहरत न ख़्वाब की ता'बीर माँगूँगा
न दुश्मनों के ज़रर से न शर से दोस्तों के

न किब्र-सिनी न ज़ोफ़ न लाचारी से पनाह माँगूँगा
न दुनिया जहान की ख़ुशियाँ न शान-ओ-शौकत ही

न ख़ुश-नसीबी न दिल का चैन न सुकून-ए-रूह माँगूँगा
न ख़ुश-गवार रातें न तूल-ए-शबाब न नींद न आग़ोश-ए-महबूब

न सामान-ए-ऐश-ओ-तरब न हूर-ओ-क़ुसूर माँगूँगा
न रुस्वाई से बचने की न इज़्ज़त आबरू की ख़्वाहिश है

न शोहरत-ओ-मक़बूलियत न अच्छी इमेज माँगूँगा
न क़र्ज़ के बोझ न ख़ौफ़ न दहशत से

न किसी के जब्र से न ज़ुल्म से हिफ़ाज़त की दुआ माँगूँगा
अब आप सोचते होंगे

कि ये बावला ये दीवाना ये पागल शख़्स
न जाने आख़िर ख़ुदा से क्या माँगेगा

सो मिरे हमदम मिरे दोस्तो मिरे यारो
ज़रा क़रीब आओ आओ बताऊँ राज़ तुम्हें दुखी दिल का

मैं ख़ुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक़ रहीम-ओ-अकरम से
जुनून-ए-मज़हबी के ख़ात्मे और अम्न की फ़ज़ा माँगूँगा