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आफ़्टर शाक्स | शाही शायरी
after shocks

नज़्म

आफ़्टर शाक्स

अनवार फ़ितरत

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अब के बरस चौमुख में
एक अज़ीम फ़िराक़ की बर्फ़ पड़ी है

कोहसारों ने
काफ़ूरी क़ब्रें ओढ़ी हैं

किसी क़दम का नक़्श
कोई धँसता हुआ पाँव

कोई फिसलता ख़ंदा
कोई किलकारी

कुछ भी नहीं
कुछ भी तो नहीं

सारे में
इक मरमर ऐसी

बेहिस यख़ की शोक
दहक रही धरती के सीने ऊपर

मरहम ऐसी
मंफ़ी दस की मरी पड़ी ख़ामोशी

एक शहीद चिनार के पहलू से बाहर को निकला
इक ख़ुश-ख़सलत

नन्हा मुन्ना हात
जो आते जाते

नौहे पढ़ते झोंकों में
दूर-दराज़ के हँसते बस्ते शहरों की

आँखों की जानिब
जो कभी उस को देख नहीं पाएँगी

एक विदा-ए-दाइम के अंदाज़ में लर्ज़ां है