कल भी मेरी प्यास पे दरिया हँसते थे
आज भी मेरे दर्द का दरमाँ कोई नहीं
मैं इस धरती का अदना सा बासी हूँ
सच पूछो तो मुझ सा परेशाँ कोई नहीं
कैसे कैसे ख़्वाब बुने थे आँखों ने
आज भी उन ख़्वाबों सा अर्ज़ां कोई नहीं
कल भी मेरे ज़ख़्म भुनाए जाते थे
आज भी मेरे हाथ में दामाँ कोई नहीं
कल मेरा नीलाम किया था ग़ैरों ने
आज तो मेरे अपने बेचे देते हैं
सच पूछो तो मेरी ख़ता बस इतनी है
मैं इस धरती का अदना सा बासी हूँ
नज़्म
अदना सा बासी
वसीम बरेलवी