मैं मोहब्बत करता और ज़िंदा रहना भूल चुकी हूँ
और खिलौनों के नए कारोबार का लुत्फ़ उठा रही हूँ
खिलौने मुझे बेच रहे हैं
मौत के हाथों
जो ज़रूरतों और ज़रूरतों की तकमील के बहरूप बदलती है
खिलौने मुझे चाबी देते हैं
और सुब्ह हो जाती है
शाम होते होते चाबी ख़त्म होती है
और ज़ेहन में भड़कते हुए शो'लों
या दिल में चुभती हुई ठंडक की तरह यादें
रात बन जाती हैं
जैसे किसी भूके नौकर को काम करवाने की मजबूरी में
मज़ीद भूका रक्खा जाता है
वो मेरी आँखों में झाँके बना सो जाता है
वजूद तक पहुँचने वाले कभी न किए जाने वाले सफ़र के लिए
वो आसमान तक जाना चाहता है
और मैं घर की दीवारें बुलंद करना चाहती हूँ
खिलौने अपना वजूद मेरे दिल से उगाते हैं
और मुझे यक़ीन है
वो वजूद रखते हैं
और में इन सारे मजबूर दिनों की तरह
अदम बन चुकी हूँ
नज़्म
अदम कथा
तनवीर अंजुम